1.ओ सदानीरा का पाठ का सारांश लिखें
ओ सदानीरा चंपारण के उस विस्तृत भू-भाग, जो बिहार के उत्तर-पश्चिम कोण पर स्थित है, की गौरवशाली गाथा का इतिहास अपने अन्तर में समेटे हुए है । यह पलाश , साल एवं अन्य वृक्षों की छाया में , लाज से सिकुडी सिमटी नदियों से अपनी तृष्णा की तृप्ति कर रहा है । मन की क्रूरता ने इसकी सुषमा का भरपूर शोषण किया है । लेखक इस क्षेत्र के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से क्षुब्ध है । वन नंगे हो गये हैं। विकास की दौड़ एवं भूमि के अपहरण ( भवन निर्माण ) तथा ट्रैक्टर की जुताई द्वारा सरसलिला नदियों को श्रीहीनकर दिया है । चंपारण की पावन भूमि कभी गौतम बुद्ध की कर्मस्थली और भगवान वधमान महावीर की जन्मस्थली रही है । कालान्तर में बाहर से अनेक आक्रमणकारी तथा अन्य प्रदेशों से अनेक जातियाँ आयीं और बस गयीं । विभिन्न संस्कृतियों का यह संगम स्थल भी है । नीलहे गोरों ( साहब ) द्वारा शोषण का यह गवाह भी है । महात्मा गाँधी के पावन चरण यहाँ पड़े थे। उनके द्वारा यहाँ के जनसमुदाय को उत्पीड़न से मुक्ति मिली थी । गाँधीजी द्वारा स्थापित बड़हरवा , मधुवन और मितिहरवा आश्रम ने वहाँ के जन जीवन को नवजीवन दिया है । अनेक बौद्धों एवं जैन तीर्थस्थल , स्तूपों एवं स्मारकों , स्तम्भों से चंपारण का चप्पा चप्पा भरा हुआ है । सम्राट अशोक का लौरिया नन्दनगढ़ का सिंह स्तम्भ अपने शिलालेख द्वारा उस समय की शासन व्यवस्था का दस्तावेज है । पतित पावनी गंडक नदी चंपारण की भूमि को अपने स्पर्श से पवित्र करती रही है । हिमालय की तराई से चलकर सोनपुर के हरिहर क्षेत्र तक गंडक के किनारे पर अनेक तीर्थों के अवशेष एवं समाधियाँ बिखरी पड़ी हैं। भैंसालोटन के निकट वाल्मीकिनगर में रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है । अब यही भैंसालोटन जंगल के बीच नवीन जीवन केन्द्र के निर्माण का आधुनिक तीर्थस्थल बन गया है भारतीय इंजीनियर गंडक घाटी योजना के अन्तर्गत एक सौ बीस मील लम्बी पश्चिम नहर तथा 55 मील लम्बी पूर्वी नहर के निर्माण कार्य में संलग्न हैं । वहीं ( भैसालोटन ) लगभग 3000 फुट लम्बा बैराज बन रहा है ,जिसके ऊपर रेल एवं सड़क संभावित है । कुल 41.49 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई इन नहरों दवारा होगी । लेखक गंडक घाटी योजना द्वारा निर्मित नहर तथा बैराज के गर्भ में विकास की अलौकिकीकरण का दर्शन कर रहा है । नगरों में उसे नारायण की भुजाओं के दर्शन हो रहे हैं और उस गज और ग्राह के युद्ध का यहीं पर अन्त होता दिख रहा है । ( इसी स्थान से गज और ग्राह की लड़ाई शुरू हुई थी ) । नहरों तथा बैराज के अभूतपूर्व निर्माण , जिसे लेखक भगवान् का नृत्य विराट् रूप कहता है – इंजीनियरों , विश्वकर्मियों तथा मजदूरों का नमन ( नमस्कार ) करता है । नये तीर्थ स्थल मूर्तियों एवं भग्न मन्दिरों में प्राण का संचार करेंगे अर्थात् इन नहरों तथा बैराज का जल लाखों एकड़ जमीन का सिंचनकर उसे उर्वर एवं शस्य श्यामला बना देगा । अन्त में लेखक परम पावनी गंडक को ओ सदानीरा ! ओ चक्रा ! ओ नारायणी ! ओ मत गंडक ! आदि अनेक नामों से सम्बोधित करते हुए कहता है कि दीन – हीन जनता इन नामों से तो गुणगान करती रही है , किन्तु तेरी निरंतर – चंचल धारा ने सदा उनके पुष्पों एवं तीर्थों को ठुकरा दिया अर्थात् तेरी बाढ़ उन्हें संत्रस्त करती रही , उनके भवनों एवं संपत्ति को नष्ट करती रही , किन्तु आज तेरे पूजन के लिए जिस मन्दिर की प्रतिष्ठा हो रही है उसकी नींव बहुत गहरी है , वह शीघ्र नष्ट नहीं हो पायेगी । अर्थात् गंडक के ऊपर जो बैराज और नहर बनी है , उसकी नींव की दीवार बहुत गहरी तथा मजबूत है गंडक नदी का तीव्र प्रवाह भी उसे तोड़ नहीं सकता
2. थारुओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दीजिये।
उत्तर- थारुओं की कला मूलतः उनके दैनिक जीवन का अंग है । जिस पात्र में धान रखा जाता है , वह सीकों से बनाया जाता है , उसकी कई रंगों के द्वारा डिजाइन बनायी जाती है । सींक की रंग — बिरंगी टोकरियों के किनारे सीप की झालर लगी होती है । दीपक जो प्रकाश बिखेरता है उसकी आकृति भी कलापूर्ण होती है शिकारी किसान के काम के लिये जो पदार्थ मूंज से बनाये जाते हैं , वहाँ भी सौन्दर्य और उपयोगिता का विलक्षण मिश्रण रहता है । उनके यहाँ नववधू जब प्रथम बार खेत पर खाना लेकर अपने पति के पास जाती है उस समय का दृश्य बड़ा कलात्मक होता है। वह अपने मस्तक पर एक पीढ़ा रखती है , जिसमें तीन लटें वेणियों की भाँति लटकी रहती हैं। प्रत्येक लट में धवल सीपों और एक बीज विशेष के सफेद दाने पिरोये रहते हैं। पीढे के ऊपर सींक की कलापूर्ण टोकरी में भोजन रहता है टोकरी को दोनों हाथों से सँभाल जब वह लाजभरी , सुहाग भरी धीरे – धीरे खेत की ओर पग बढ़ाती है , तो सीप की वेणियाँ रजत कंकण की भाँति झंकृत हो उठती हैं और सारे गाँव को पता चल जाता है वधू अपने प्रियतम को कलेवा कराने जा रही है।
3. गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी आदर्श क्या थे
उत्तर -गाँधी जी तत्कालीन शिक्षा पद्धति से सहमत नहीं थे , उनका जो पत्र चम्पारण के कलक्टर के नाम था , उसी से उनके शिक्षा सम्बन्धी आदर्श स्पष्ट हो जाते हैं। गाँधी जी पुरानी लोक के पक्षपाती नहीं थे और वर्तमान शिक्षा पद्धति को बड़ा खौफनाक और हेय मानते थे । उनका आदर्श था बच्चों में चरित्र और बौद्धिक विकास कारण वर्तमान पद्धति बच्चों को बौना बनाती है , उनका ध्येय था वर्तमान शिक्षा पद्धति के दोषों से बचकर मात्र उसके गुणों का ग्रहण । उनका उद्देश्य था बच्चे ऐसे पुरुष और
महिलाओं के सम्पर्क में आये जो सुसंस्कृत हों , जिनका चरित्र निष्कलुष हो । गाँधी जी की वास्तविक शिक्षा यही थी – ज्ञान , चरित्र एवं बौद्धिक विकास विद्यालयी शिक्षा तो उसका माध्यम मात्र है । जीविका हेतु जो बालक नए साधन सीखना चाहते हैं उनके लिए औदयोगिक शिक्षा की भी व्यवस्था रहेगी। यह भी नहीं है कि शिक्षा प्राप्ति के उपरान्त बालक अपने परम्परागत व्यवसाय का परित्याग कर दे। वे जो भी ज्ञान विद्यालय में प्राप्त करेंगे उसके माध्यम से ग्रामांचल में कृषि व्यवसाय आदि को उन्नत बनाने का प्रयास करेंगे।
4.यह पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़ा करता है
उत्तर- यह पाठ हमारे सामने कई प्रश्न खड़े कर देता है – प्रकृति का दोहन , जंगल काटे गये , बेशुमार काटे गये और परिणाम सामने आया बाढ़ , दलदल और गाँवों की बर्बादी । मानव छोटे हित के सामने व्यापक हित कूड़ेदान में फेंक देता है और नीलकोठी के अंग्रेजों और उनके भीषण अत्याचार सह गये क्यों मात्र स्वार्थ और संगठित शक्ति के अभाव में उन्होंने झोंपड़िया जला दी लोभ के लिये और फिर उन्हीं की सेवा में जुट गये । गाँधी जी का आगमन एक वरदान बना और यह भी सत्य है कि यह चम्पारण ही था जिसने महात्मा गाँधी को गाँधी बना दिया और उनके सारे गुणों को उजागर कर उन्हें महात्मा गाँधी बना दिया । बौद्ध स्तूप , मठ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है – हमारी सांस्कृतिक विरासत मिटती जा रही है । गंडक की तबाही भी हमें हिला देती है यह हमारी अकर्मण्यता का प्रतिफल है।सामूहिकता के अभाव का कुफल है । उस योजना बन सकती पर सोचा ही नहीं गया ।