1.सूरदास पाठ का सारांश लिखें
पद 1का सारांश
हे माता ! कभी अवसर हो तो कुछ करुणा की बात छेड़कर श्रीरामचन्द्र जी को मेरी भी याद दिला देना ( इसी से मेरा काम बन जायेगा ) यों कहना कि एक अत्यन्त दीन , सर्वसाधनों से हीन , मनमलीन , दुर्बल और पूरा पापी मनुष्य आपकी दासी का दास कहलाकर और आपका नाम ले – लेकर पेट भरता है । इस पर प्रभु कृपा करके पूछे कि वह कौन है तो मेरा नाम और मेरी दशा उन्हें बता देना । कृपालु रामचन्द्रजी के इतना सुन लेने से ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जायेगी । हे जगजननी जानकी जी ! यदि इस दास की आपने इस प्रकार के वचनों से ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके स्वामी की गुणावली गाकर भवसागर से तर जायेगा ।
पद 2 का सारांश
हे भगवान् ! आज सवेरे से ही मैं आपके दरवाजे पर अड़ा बैठा हूँ । रें-रे करके रट रहा हूँ, गिड़गिड़कर माँग रहा हूँ मुझे और कुछ नहीं चाहिये । बस एक कौर टुकड़े से ही काम बन जायेगा । जरा सी कृपा दृष्टि से ही मैं पूर्णकाम हो जाऊँगा । यदि आप कहें कि कोई उद्यम क्यों नहीं करता गिड़गिड़ाकर भीख क्यों माँगता है तो इसका उत्तर यही है कि इस भयंकर कलयुग में उत्तम साधनरूपी उद्यम का बड़ा ही दारुण दुर्भिक्ष पड़ गया है , जितने उपाय साधन हैं सभी बुरे हैं । कोई भी निर्विघ्न नहीं होता । इसी से आपसे भीख माँगना ही मैंने उचित समझा है । कलयुगी मनुष्यों की करतूत तो नीच है , दिन – रात विषयों के लिए ही पाप में रत रहते हैं । उनका मन ऊँचा है वह चाहते हैं सच्चा सुख मिले , परन्तु सच्चा मोक्षरूप सुख बिना भगवत्कृपा हुए मिलता नहीं , जैसे कि कोढ़ की खाज जिसे खुजलाते समय सुख मिलता है , पर पीछे मवाद निकलने पर जलन पैदा हो जाती है । उसी के समान इन्द्रियों के उद्यम और साथ विषय का संयोग होने पर आरम्भ में तो सुख मिलता है , परन्तु परिणाम में महादुःख होता है । इसलिए विषय केवल दु खमायी ही हैं । इसी बात को समझकर मैंने किसी भी उद्यम में मन नहीं लगाया । मैंने हृदय में डरकर कृपालु संत – समाज से पूछा कि कहिये मुझ सरीखे उद्यमहीन को भी कोई शरण में लेगा । सन्तों ने एक स्वर से यही उत्तर दिया कि एक कौसलपति महाराज श्रीरामचन्द्र ही ऐसे को शरण में रख सकते हैं । हे कृपा के समुद्र । आपको छोड़कर दीनता और दरिद्रता का नाश कौन कर सकता है। हे दशरथनन्दन ! दानियों का बाना रखने वालों में आप श्रेष्ठ हैं । हे गरीबनिवाज ! मैं जन्म का भूखा और भिखमंगा हूँ । बस अब इस तुलसी को भक्तिरूपी अमृत के समान सुन्दर भोजन पेटभर खिला दीजिये । अर्थात् अपने चरणों में ऐसी भक्ति दे दीजिये कि फिर दूसरी कोई कामना न रह जाये ।
2. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है
उत्तर-सूरदास रचित प्रथम पद में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूल कर उनमे तन्मय और विभोर होता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है।
3. गायें किस ओर दौड़ पड़ी
उत्तर- भोर हो गई है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं कमल के फूल खिल उठे हैं, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशाला से अपने अपने बच्चों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ी है।
4. पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषता लिखिए।
उत्तर- यह जागरण गीत है, जिसमें बालक के स्वभाव का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है। बालक यह जानना चाहता है कि सुबह हो गई है अथवा नहीं माता पहले ही यह स्पष्ट कर देती है। प्रथम पद में मातृ ह्रदय की अनूठी व्यंजना है मनोहर है लालसा है देखने की कामना है। बालसुलभ चेष्टाओं का बड़ा यथार्थ एवं भावनात्मक चित्रण हुआ है। छोटी से छोटी बाल क्रीड़ा का रूप निखर उठा है और रस श्रृंगार में सहायक हैं। अतः यहाँ बाल क्रीड़ाएं चेष्टाएँ मातृ ह्रदय की अनूठी व्यंजना हो उठी है
5. कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं
उत्तर-कृष्ण नंद बाबा की गोद में बैठे हैं और अपने हाथ से उठा उठा कर खा रहे हैं। वे थोड़ा सा खाते हैं अधिक धरती पर गिरा देते हैं। वह भोज्य पदार्थ को अपने हाथों से ही उठाते हैं अनेक पदार्थ उनके सामने हैं पर दही उनको सर्वाधिक प्रिय हैं। वे जब मिश्री दही मक्खन मिलाकर अपने मुंह में डालते हैं तो उस समय की शोभा देखते ही बनती हैं।