1.हँसते हुए मेरा अकेलापन का पाठ का सारांश लिखें
हँसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी मलयज की एक उत्कृष्ट रचना है । मलयज अत्यन्त आत्मसजग किस्म के बौद्धिक व्यक्ति थे । डायरी लिखना मलयज के लिए
जीवन जीने के कार्य जैसा था । ये डायरी मलयज के समय की उथल – पुथल और उनके निजी – जीवन की तकलीफों बेचैनियों के साथ एक गहरा रिश्ता बनाते हैं । इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को हम उसकी समस्त जटिलताओं में देख सकते हैं । पाठ्य – पुस्तक में प्रस्तुत डायरी के अंश की प्रथम डायरी में मलयज ने प्रकृति एवं मानव के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है । मिलिट्री की छावनी में वृक्ष काटे जा रहे हैं । लेखक वृक्षों के एक गिरोह में उनकी एकात्मकता का संकेत देता है । वृक्षों का चित्रण करते हुए मलयज लिखते हैं- वे जब बोलते हैं, तब एक भाषा में गाते हैं, तब एक भाषा में रोते हैं तब भी एक भाषा में लेखक ने जाड़े के मौसम में घने कुहरों का सजीव चित्र अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। साथ ही, ऐसे ठंडे मौसम में भी कलाकार के हृदय में आग है लेकिन उसका दिमाग ठंढा है। डायरी में लिखा है- एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें आग हो और वह खुद ठंढा हो । दूसरे दिन की डायरी में लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना खेती की फसलों से की है। मनुष्य का जीवन फसल के समान बढ़ता , पकता एवं कटता दिखायी देता है। तीसरे दिन की डायरी में लेखक ने चिट्ठी की उम्मीद में और चिट्ठी नहीं आने पर अपनी मनोदशा का वर्णन किया है । चिट्ठी नहीं आने पर एक अजीब – सी बेचैनी मन में आती है। चौथी डायरी में लेखक ने लेखक बलभद्र ठाकुर नामक एक लेखक का चित्रण किया है और बताने का प्रयास किया है कि एक लेखक कितना सरल एवं मिलनसार होता है। अपनी रचनाओं पर लेखक को गर्व होता है , उसका सहज चित्र डायरी में प्रस्तुत है कौसानी में कुछ दिनों तक लेखक का प्रवास बड़ा ही आनन्ददायक रहा। दो शिक्षकों का चित्रण उनके सहज एवं सामाजिक स्वभाव को दिखाया गया है । पाँचवीं डायरी में भी लेखक ने कौसानी के प्राकृतिक एवं शांत वातावरण का चित्रण किया है । छठी डायरी में मलयज ने एक सेब बेचनेवाली किशोरी का चित्रण बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है । किशोरी इतनी भोली थी कि सेब बेचने में उसका भोलापन परिलक्षित होता है । सातवीं डायरी में मलयज यथार्थवादी दिखायी देते हैं । उनके अनुसार मनुष्य यथार्थ को रचता भी है और यथार्थ में जीता भी है । उनके अनुसार रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है । बाल – बच्चे रचे हुए यथार्थ हैं । वे सांसारिक वस्तुओं का भोग करते हैं । मलयज ने लिखा है- हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है। आदमी के होने की शर्त यह रचता जाता । मोगा जाता संसार ही है। उनके अनुसार रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है । आठवीं डायरी में लेखक ने शब्द एवं अर्थ के बीच निकटता का वर्णन किया है । लेखक का कहना है शब्द अधिक होने पर अर्थ कमने लगता है और अर्थ की अधिकता में शब्दों की कमी होने लगती है । अर्थात्श ब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदले चले जाते हैं । नवीं डायरी में लेखक ने सुरक्षा पर अपना विचार व्यक्त किया है । व्यक्ति की सुरक्षा रोशनी में हो सकती है , अंधेरे में नहीं अंधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है । सुरक्षा तो चुनौती को झेलने में ही है , बचाने में नहीं । अतः आक्रामक व्यक्ति ही अपनी सुरक्षा कर सकता है । बचाव करने में व्यक्ति असुरिक्षत होता है । दसवीं डायरी में लेखक ने रचना और दस्तावेज में भेद एवं दोनों में पारस्परिक संबंध की चर्चा की है। लेखक के अनुसार दस्तावेज रचना का कच्चा माल है । दस्तावेज रचनारूपी करेंसी के वास्तविक मूल्य प्रदान करनेवाला मूलधन है । ग्यारहवीं डायरी में लेखक ने मन में पैदा होनेवाले डर का वर्णन किया है । लेखक अपने को भीतर से डरा हुआ व्यक्ति मानता है । मन का हर तनाव पैदा करता है , संशय पैदा करता है । किसी की प्रतीक्षा की घड़ी बीत जाने पर मन में डर पैदा होता है । डर कई प्रकार के होते है । मनुष्य जैसे- जैसे जीवनरूपी समस्याओं से घिरता जाता है उसके मन में डर की मात्रा भी बढ़ती जाती है । अन्तिम डायरी में लेखक ने जीवन में तनाव के प्रभाव का वर्णन किया है। मनुष्य जीवन में संघर्षों का सामना करते समय तनाव से भरा रहता है। इस प्रकार प्रस्तुत डायरी के अंश में मलयज ने अपने जीवन के संघर्षों एवं दुखों की ओर इशारा करते हुए मानव जीवन में पाये जानेवाली सहज समस्याओं का चित्रण बड़ी ही कुशलता से किया है । एक व्यक्ति को कितना खुला , ईमानदार और विचारशील होना चाहिए इस भाव का सहज चित्रण लेखक ने अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। व्यक्ति के क्या दायित्व
2. लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है
उत्तर- सुरक्षा डायरी में नहीं है , वहाँ मात्र पलायन और पलायन कभी भी सुरक्षा का आधार नहीं बन सकता । सुरक्षा अंधेरे में नहीं मिलती , वहाँ दुबका जा सकता है छुपा जा सकता है । जहाँ आपका दिल बराबर धड़कता रहे , धुक – धुकी चाल रहेगी । यदि सुरक्षा पानी है , मैदान में कई आदमी समाज के खुले प्रकाश में आइये और असुरक्षा से भिड़ जाइये । संघर्ष पर डट जाइये । सुरक्षा पलायन में नहीं संघर्ष में है , चुनौती स्वीकार करके मुकाबला करने में है अपने को झोंक देने में है बचकर खड़े रहने में भी नहीं है । डायरी लेखन किस प्रकार सुरक्षित हो सकता है , वहाँ हम भोगा हुआ यथार्थ लिख देते हैं। क्यों किया क्या किया इसका वहाँ उल्लेख नहीं होता कर्त्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय भी नहीं होता । वहाँ लाइनें लिखी और छुट्टी पाली । यह पलायन है कायरता है और यह व्यक्ति के लिए एक सुखद स्थिति नहीं है यहाँ मात्र एक प्रकार का आवरण डालना है अपनी कमजोरियों पर अपनी गलतियों पर अत डायरी लेखन अपने को बचाने का सिद्धान्त मात्र है ।
3.11 जून , 1978 की डायरी से शब्द और अर्थ के सम्बन्ध पर क्या प्रकाश पड़ता है अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- शब्द और उनके अर्थ किसी भी रचना के मापदंड हैं। यदि शब्द अलग हो उनके भाव कुछ और तो यह लेखक पांडित्य को दर्शाता है, परंतु सामान्य पाठक लेखक की बात को नहीं समझ पाता है डायरी में चुकी लेखक अपने यथार्थ की बात लिखता है इसीलिए शब्दों और अर्थों में तटस्थता कम रहती है, इस कारण डायरी लिखना कठिन भी है। यदि अर्थ शब्द के साथ चलते हैं तब रचना सामान्य जन की होती है हालांकि उसका विस्तार सीमित होता है जो रचना की उत्पत्ति का अड्डी श्रोत है यदि अर्थ और शब्द साथ साथ नहीं चलते हैं तो रचना एक उन्मुक्त आकाश की भांति हो जाती है जिनमें पाठक उसे अपनी कल्पनाओं के अनुसार समझता है
4. रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है लेखक दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है
उत्तर-दस्तावेज एक विवरण है रचना एक विवरण की व्याख्या है उसकी रचनात्मक प्रस्तुति है । यह भी कहा जा सकता है कि दस्तावेज रचना हेतु कच्चा माल की घटनाएँ परिस्थितियाँ भाव विचार दस्तावेज के ही अंग हैं और रचना का आधार भी हैं। दस्तावेज के अभाव में रचना की सुघड़ता ही नहीं है अत रचना का आधार दस्तावेज ही है रचना का एक रूप है , एक प्रस्तुति है जिसका आधार दस्तावेज ही है । वह हमारे भीतर की आन्तरिकता की वाणी है , जिसको सहृदय समझकर रसमग्न हो उठता है दस्तावेज एक रूखी रोटी है उस पर घी चुपड़कर और दूध में मलकर ही रचना बनती है।