1.विद्युत मोटर क्या है? इसके सिद्धान्त और क्रियाविधि का सचित्र वर्णन करें।
विद्युत मोटर (Electric motor): विद्युत मोटर एक विद्युतीय यंत्र है जिसमें विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।
सिद्धांत : जब किसी आयताकार कुण्डली किसी समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखते हुए कुण्डली से विद्युत-धारा प्रवाहित की जाती है तब कुण्डली के दो भुजाओं पर बल अपूर्ण लगने लगता है, जो कुण्डली का घूर्णन कराता है। इस प्रकार कुण्डली में घूर्णन गति उत्पन्न हो जाती है। इससे विद्युत ऊर्जा का रूपांतर; गतिज ऊर्जा में होता है।
बनावट : एक विद्युत मोटर के मुख्य बनावट को चित्र में दर्शाया गया है। इसमें एक धुरे पर एक विद्युत रोधित तार की आयताकार कुण्डली होती है, जो चुम्बक के ध्रुव तथा ध्रुव के बीच रखी रहती है।
धुरे पर दो विभक्त वलय तथा लगा रहता है। इनके ऊपर दो कार्बन ब्रश तथा लगा रहता है। कुण्डली के दोनों छोर तथा से जुड़ा रहता है। तथा से परिपथ से जोड़ा रहता है।
कार्य सिद्धांत : जब परिपथ से विद्युत-धारा प्रवाहित की जाती है तब कुण्डली से भी विद्युत-धारा का प्रवाह होता है। अब धारावाही कुण्डली समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित है। इससे तथा भुजा पर परस्पर कुण्डली के लम्बवत्, परन्तु विपरीत दिशा में बल लगने लगता है। इन बलों की दिशा फ्लेमिंग के वाम-हस्त का नियम से ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार से कुण्डली पर लगे बल-युग्म के कारण कुण्डली घूर्णन करने लगता है।
विभक्त वलय अपने प्रत्येक दीर्घचक्र के बाद अपना स्थान परिवर्तित कर देता है। इससे कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा उत्क्रमित हो जाता है। अतः, विभक्त वलयय, दिक्परिवर्तक का कार्य करता है।
2.प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण क्या है? स्पेक्ट्रम कैसे बनता है ?
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of light) – श्वेत प्रकाश-किरण में सात अवयवी रंग होता है। जब श्वेत प्रकाश-किरण किसी प्रिज्म से गुजरती है तंब वह अपनी सात अवयवी रंगों में विभक्त हो जाती है । श्वेत प्रकाश के अपनी अवयवी रंगों में विभक्त होने की घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। विक्षेपण के बाद रंगों का जो बैण्ड प्राप्त होता है उसे स्पेक्ट्रम कहते हैं ।
3.डायनेमो क्या है? इसके क्रिया-सिद्धान्त और कायंविधि का सचित्र वर्णन करें।
ऐसा डायनेमो जिससे दिष्ट-धारा प्राप्त होती है डी०सी० डायनेमो कहलाता है।
दिष्ट-धारा डायनेमो वीी बनावट लगभग प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो के समान ही होती है, लेकिन अंतर सिर्फ इतना ही होता है कि आर्मेचर के छोरों पर एक ही वलय के आधे-आधे भाग अलग-अलग ढँके रहते हैं।
आधे घूर्णन के समय खंड धनात्मक ध्रुव होता है तब ब्रश इसके संपर्क में रहता है। घूर्णन क्रम में जब ऋणात्मक बन जाता है तो इसका संपर्क ब्रश से हो जाता है तथा.
ब्रश का संपर्क खंड से हो जाता है। इस तरह ब्रश धनात्मक तथा ब्रश ऋणात्मक विभव पर बने रहते हैं। ऐसा रहने पर आर्मेचर की धारा की दिशा बदलने पर भी बाह्य परिपथ में धारा की दिशा हमेशा एक हीं दिशा में रहती है जो शून्य से अधिकतम मान के बीच बदलता है। अतः, ऐसे डायनेमो से दिष्ट-धारा (डी०सी०) प्राप्त होती है।
4.मानव नेफ्रॉन का एक स्वच्छ-नामांकित चित्र बनाएँ ।
5.मानव मस्तिष्क का एक स्वच्छ-नामांकित चित्र बनाइए ।