हिंदी में निबंध लिखें।
1.शिक्षक दिवस
(i) भूमिका:- हर वर्ष 5 सितंबर को पूरे भारत में शिक्षक दिवसे मनाया जाता है और शिक्षकों सम्मान दिया जाता है । शिक्षक दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस के दिन मनाया जाता है । इस अवसर पर उनको याद किया जाता है । शिक्षक और छात्रों के रिश्ते को और भी अच्छा बनाने का एक महान अवसर होता है ।
(ii) ममत्व:- इस दिन छात्र अपने शिक्षक और शिक्षिकाओं के सामने अपने विचार और अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकते हैं । शिक्षक दिवस के दिन देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद किया जाता है । शिक्षक दिवस भारत के साथ अन्य देशों में भी मनाया जाता है । राधाकृष्णन एक विद्वान शिक्षक थे उन्होंने अपने जीवन के अमूल्य 40 वर्ष एक शिक्षक के इस देश के भविष्य को संवारने में अपना योगदान दिया है । शिक्षक छात्रों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । शिक्षक का अर्थ है शिक्षा देने वाला शिक्षक छात्रों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । शिक्षक के बिना छात्रों के जीवन अधूरा है ।
(iii) उपयोगिता:- शिक्षक दिवस के दिन हमें ढेर सारे आर्शीवाद मिलते हैं । इस दिन हर स्कूल में चहल-पहल होती है । बच्चे अनेक प्रकार के स्पीच देते हैं जिससे उनकी ज्ञान में वृद्धि होती है और उनके दिल में शिक्षकों के लिए आदर और सम्मान और भी बढ़ जाता है । छात्र शिक्षक के सम्मान में अनेकों प्रकार के गीत प्रस्तुत करते हैं । ऐसा कहा जाता है कि गुरु के बिना हम अपने लक्ष्य को प्राप्ति कदापि नहीं कर सकते हैं, और ये सच है । क्योंकि शिक्षा महत्व हमारे जीवन में इतना है कि बिना इसके हम कामयाब नहीं हो सकते हैं । शिक्षक बिना मनुष्य अपूर्ण है ।
(iv) उपसंहार:-शिक्षक दिवस का दिन गुरुओं का दिन होता है । इस दिन पूरे भारतवर्ष में शिक्षकों के सम्मान में अनेकों प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन होता है और छात्र व छात्राएँ मिलकर आयोजन को रंगीन बनाते हैं । हमें शिक्षक दिवस के महत्व को समझते हुए उनका सम्मान करना चाहिए, उनकी उपयोगिता और महत्व को समझते हुए इस दिन की शोभा बढ़ानी चाहिए।
2.हमारा विद्यालय
(i)मेरा विद्यालय :-मेरा विद्यालय शहर की भीड़-भाड़ से दूर एकांत स्थल पर है। प्राचीन काल से ही विद्यालयों के लिए ऐसे स्थान को उपयुक्त समझा जाता था, जहाँं पर किसी प्रकार का शोर न हो, क्योंकि पढ़ाई के लिए शॉति की आवश्यकता होती है। विद्यालय बहुत बड़ी जगह में फेला हुआ है, इसके चारों और ऊँची-ऊँची दीवारें हैं। विद्यालय के पीछे की ओर एक बहुत बड़ा मैदान है । जिसमें हम सभी विद्यार्थी खेल-कुद का आनंद लेते हैं। यही पर हमारा प्रार्थना स्थल है जहाँ पर हम सुबह प्रार्थना करते हैं और अपने दिन की शुरुआत करते हैं।
(ii)शिक्षण व्यवस्था:- अनुशासन किसी भी व्यक्ति की सफलता में अहम् भूमिका निभाता है । जब बच्चा छोटा होता है तो वह पहले परिवार से तथा बाद में विद्यालय में जाकर अनुशासन के महत्त्व को समझता है । अनुशासन की दृष्टि से हमारा विद्यालय बहुत कठोर है। विद्यालय में यदि कोई विद्यार्थी अनुशासन का उल्लंघन करता है तो उसे कड़ा दंड दिया जाता है। प्रत्येक विद्यार्थी के घर पर उसके अनुशासन की मासिक रिपोंट भेजी जाती है । हमारे विद्यालय में कुल 20 अध्यापक-अध्यापिकाएँ है, जो कि प्रत्येक कक्षा में अलग-अलग विषय पढ़ाते है । सभी अध्यापक -अध्यापिकाएँ अपने-अपने विषयों में विद्वान है जिस कारण हमें हर विषय सरलता से समझ में आ जाता है।
(iii)पाठ्यक्रमेतर कार्य :- हमारे विद्यालय में प्रत्येक सप्ताह योगा की कक्षा भी होती है जिसमें योगा करना सिखाया जाता है तथा योगा के महत्त्व को समझाया जाता है । हमें अपने स्वास्थ्य को कैसे अच्छा रखना है, यह भी बताया जाता है। योगा से हमारे तन-मन में चुस्ती और स्फूर्ति बनी रहती है, जिससे हमारा पढ़ाई में मन लगा रहता है। हमारे विद्यालय का परिणाम हर वर्ष शत-प्रतिशत ही रहता है, जिसके कारण हमारा विद्यालय हमारे शहर का जाना-माना विद्यालय बन गया है । विद्यालय के परीक्षा -परिणाम के शत-प्रतिशत रहने का कारण यहाँ के शिक्षकों का विद्वान और अच्छे व्यक्तित्व का होना भी है, जो विद्यार्थियों के सभी प्रश्नों को धिय्यं के साथ सुनते हैं तथा उनका समाधान करते हैं। अध्यापकों के साथ-साथ बच्चों और उनके अभिभावकों की मेहनत के कारण भी विद्यालय का परीक्षा परिणाम हर वर्ष शत-प्रतिशत रहता है।
3.सरस्वती पूजा
(i)भूमिका:-माता सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं । इनकी पूजा माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात् ‘वसंत पंचमी’ को होती है । उस दिन से ही वसंतोत्सव आरंभ हो जाता है । ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन से जाड़ा विदा हो गया और गर्में कपड़ की आवश्यकता नहीं रही । भारत के सभी विद्यालयों में माँ सरस्वती की पूजा की जाती है । सरस्वती पूजा सारे विद्यार्थियों का पर्व है।
(ii)सरस्वती का रूप और अर्थ :-माँ शारदा की पूजा का
अपना महत्त्व है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी या अधिष्ठात्री माना है । उनका वाहन हंस है। यह हंस जवान और सत्यासत्य का निर्णायक है। उजला कमल सरस्वती का आसन है, जो सादगी और स्वच्छता का प्रतीक है। सरस्वती का वस्त्र और रंग भी उजला है सरवशुक्ला सरस्वती कही जाती है। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो शिक्षा पाना चाहते हैं उन्हें रंगीन और कीमती वस्त्र नहीं धारण करना चाहिये । सरस्वती के एक हाथ में बीणा है जो बतलाती है कि विद्या के साथ संगीत का होना भी आवश्यक है । यह संगीत जीवन को मधुर और सरस बनाता है । सरस्वती के दूसरे हाथ में पुस्तक है, जो ज्ञान की शिक्षा देती है । सरस्वती पूजा का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि इस दिन हम सभी माँ सरस्वती के चरणों में अपने को सौंप दें और उनसे ऊँचे-ऊँचे विचार और ज्ञान पाने की प्रार्थना करें ।
(iii)पूजा-विधि:-पूजा के लिए सरस्वती की सुन्दर प्रतिमा बनवायी जाती है और इसे सुन्दर-से- सुन्दर वस्त्रों तथा माला आदि से सजाया जाता है । पूजा सुबह आठ बजे शास्त्रीय विधि से की जाती है । पूजा की समाप्ति के बाद प्रसाद वितरण का कार्य सम्पन्न किया जाता है । पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के लिए प्त्येक छात्र के अभिभावक को भी बुलाया जाता है । पूजा काल में सभी अभिभावक आकर बैठते हैं और पूजा की समाप्ति के बाद प्रसाद लेकर अपने घर जाते हैं । प्रसाद वितरण का यह क्रम लगभग दो घंटे तक चलता है । पूजा का मह त्व -सरस्वती पूजा हमारे लिए ज्ञान का प्रकाश लाती है । सच्ची विद्या की शिक्षा देती है और उस दिन हम यह प्रतिज्ञा दुहराते हैं कि पढ़-लिखकर हम अपना, अपने परिवार का, अपने पमाज और देश का नाम ऊॅचा करंगे । हर वर्ष हमें सरस्वती पूजा ऐसा ही उपदेश दे जाती है।
(iv)उपसंहार:-कुछ लग सरस्वतो पूजा के दिन जुलूस में उच्छंखलता पर उतारू हो जाते हैं। यह पूजा-भावना के विपरीत है । हमें यह पूजा पूरी शालीनता से करते हुए प्रारथना करनी चाहिए
4.देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद महान स्वतंत्रता सेनानी और विद्वान व्यक्ति थे। वे सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति थे। देश के उच्चतम पद राष्ट्रपति पद पर आसीन होने पर भी उन्हें घमंड छू न सका था जिन महापुरुषों ने त्याग और सेवा के बल पर भारत का नाम ऊॅचा किया उनमें डॉ- राजेन्द्र प्रसाद की नाम सर्वोपरि है । उनका जन्म 3 दिसम्बर, 1884 ई० को सीवान जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गाँव से ही प्राप्त की । आगे उन्होंने छपरा जिला स्कूल में नाम लिखाया। बचपन से ही वे पढ़ने-लिखने में काफी प्रतिभाशाली थे। उन्होंने प्रवेशिका परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने कोलकाती क प्रेसीडेंसी कॉलेज में नाम लिखाया । उसी कॉलेज से उन्होंने आई-ए० बीवए एवं एमु० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। हर परीक्षा मैंउन्होंने सर्वप्रथम स्थान प्रप् किया। इसके बाद वे लंगट सिह कॉलेज मुजफ्फरापुर में अग्रेज़ी के प्रीफेसर रहे। एक वर्ष बाद उन्होंने वकालत की पुरीक्षा पास कर लो और पटना उच्च न्यायालय में नामी वकील हो गए । वकील के काम में उन्हें काफी हद तक सफलता मिली । 1917 ई० में महात्मा गाँधी ने चंपारण में सत्याग्रहं अन्दोलन प्रारंभ किया । राजेन्द्र बाबू ने अपनी खासी चलती वकालत छोड़ दी और महात्मा गाँधथीं के साथ हो गए । उसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। वे महात्मा गाँधी के प्रिय शिष्य थे । उन्हें सत्य और अहिंसा’ पर पूर भरासा था। वे भारत की दुर्दशा को देखकर रो पड़ते थे । उन्होंने जीवन भर स्वेदशी वस्तुओं का ही उपयोग किया । सत्याग्रह आन्दोलन, के चलते उन्हें कई बार मार खानी पड़ी और कई बार जैल की यातनाएँ भी झलनी पड़ी । यह सब हो जाने के बाद भारत स्वतंत्र हुआ स्वतंत्रता के बाद देश में नए संविधान की जरूरत थी। राजेन्द्र बाबू को ही संविधान सभी का अध्यक्ष चुना गया । संविधान लागू होने पर 1952 ई० में उन्हें स्वतंत्र भारत की प्रथरम राष्ट्रूपति जुना गया। इस पद पर वे लगातार 10 वर्षों तक बने रहे । आगे वें अंवकाश प्राप्त कर ‘सदाकत आश्रम’ पटना चले आए। उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि भी दी थी। 28 फरवरी, 1963 ई० में पटना के सदाकत आश्रम में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु हो गई। आज राजेन्द्र बाब हमारे बीच नहीं हैं पर उनेका व्यक्तित्व हमें सदा रास्ता दिखाता रहेगा । राजेन्द्र प्रसाद ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की प्रतिमुूर्ति थे। इतने बड़े विद्वान और देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होते हुए भी घमंड उन्हें छू नहीं सका था। वे स्वतंत्र भारत के सच्चे भक्तों और सपूतों में से एक थे।