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12th Hindi Subjective Question Part-6| एक लेखक और एक पत्र का पाठ का सारांश लिखें| vvi hindi subjective question

1.एक लेखक और एक पत्र का पाठ का सारांश लिखें

भगत सिंह महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी और विचार थे भगत सिंह विद्यार्थी औरराजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ साथ ही राजनीतिक में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझाना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर हैं। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को समझाते हैं कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीतिक नहीं तो क्या है। भगत सिंह मानते हैं कि हिंदुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवक की जरूरत है जो देश पर अपनी जान न्योछावर कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे क्योंकि विद्यार्थी देश दुनिया की हर समस्या से परिचित होते हैं उनके पास अपना विवेक होता है। इस समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते है। अतः विद्यार्थियों को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।

2. भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर देश की सेवा की जा सकती है । उनके जीवन के आधार पर उसे प्रमाणित करें।
उत्तर- भगतसिंह उत्कृष्ट राष्ट्रभक्त और महान क्रान्तिकारी थे । उस काल में देशभक्त होना पाप था और क्रान्तिकारी होना तो महापाप था । फिर ऐसा व्यक्ति कष्टपूर्ण जीवन ही व्यतीत करता है । भगतसिंह का कष्टपूर्ण जीवन 12 वर्ष से ही प्रारम्भ हो गया था । जलियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर उनका संकल्प गूंजा था । उनकी प्रथम कारागार यात्रा अक्टूबर 1926 में हुई थी। उनके द्वारा जीवन कष्टों में ही बीता और असेम्बली में बम फेंकने के बाद तो वे कारागर में ही रहे । उनका हौसला बड़ा बुलन्द था साथ ही वह यह भी मानते थे कि वे किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करते हैं। उनका असेम्बली में बल फेंकना भी विचारपूर्ण कार्य था । कार्य के बाद उसका फल भोगना ही पड़ता है। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा था कि मुझे अपने लिए मृत्युदण्ड सुनाये जाने का अटल विश्वास है । उन्होंने रूसी साहित्य का सन्दर्भ देते हुए कहा है – विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं । हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर होती है पर रूसी साहित्य में ये स्थितियाँ काफी होती हैं और हम उन्हें इसी कारण पसन्द भी करते हैं वे यह मानते हैं कि हमारे जैसे व्यक्तियों में जो प्रत्येक दृष्टि से क्रान्तिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों , चिन्ताओं दुःख और कष्टों को सहन करने के लिये तत्पर रहना चाहिए जिनको स्वयं प्रारम्भ किये संघर्ष द्वारा आमन्त्रित किया गया है और जिनके कारण हम अपने आपको क्रान्तिकारी कहते हैं। यही हठ उनका विश्वास था कि भगतसिंह फाँसी के फन्दे पर झूल गये । ये कष्ट उन्होंने क्यों सहे इनका प्रभाव जनता पर पड़ेगा और जनता आन्दोलित हो उठेगी अत भगतसिंह की यह उक्ति बड़ी सार्थक है।
3. भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं
उत्तर- भगत सिंह मानते हैं रूसी साहित्य में प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि नहीं दिखाई देती। हम उन कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियों को बहुत पसन्द करते हैं परन्तु कष्ट सहने की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते । हम इनके उन्माद और उनके चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक , परन्तु इसके कारणों पर सोच – विचार करने की कभी चिन्ता नहीं करते । वे यह भी मानते हैं केवल विपत्ति सहन करने के साहित्य के उल्लेख ने ही उन कहानियों में सहदयता के दर्द की गहरी टीस और उनके साहित्य ने ऊँचाई उत्पन्न की है। भगतसिंह क्रान्तिकारियों के विषय में कहते हैं या उनसे अपेक्षा करते हैं. हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन करने की उस भावना को अनुभव करें । उनके कारणों पर विचार-विमर्श करें। साथ ही हम जैसे क्रान्तिकारियों को सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं , दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए । भगतसिंह यह भी स्पष्ट करते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इन स्थितियों में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको , जो कठोरतम सजा मिलनी है उसको सहर्ष हँसते हँसते बर्दाश्त करना चाहिए क्रान्तिकारियों को उनकी यह भी सम्मति है कि किसी आन्दोलन के विषय में यह कहना कि दूसरा कोई यह काम कर लेगा अथवा यह करने हेतु काफी लोग है , यह उचित नहीं है . इस प्रकार जो लोग क्रान्तिकारी क्षेत्र में पैर डालना अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था कार्यों के विरुद्ध संघर्ष प्रारम्भ कर देना चाहिए । है
4. जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगतसिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंयो अपना पक्ष प्रस्तुत करें
उत्तर – यहाँ दो स्थितियाँ हैं , देश के बारे में सोचना और अपने बारे में सोचना । यह भी सोचना कि देश बड़ा है अथवा व्यक्ति भगतसिंह यही मानते हैं कि देश सर्वोपरि है, उसके सामने व्यक्ति का मूल्य नहीं है । महाभारत में कहा गया है – परिवार हेतु व्यक्ति का परित्याग कर देना चाहिए और राष्ट्रहितार्थ सर्वस्व का बलिदान कर देना चाहिए और हुआ भी यही है ! चन्द्रशेखर , भगतसिंह , सुभाष इसी परम्परा के रत्न हैं , जिनके आधार पर ही अंग्रेजी शासन हिल गया था । पर आज व्यक्ति , महत्वपूर्ण हो गया है , देश पीछे धकेल दिया गया है। स्विस बैंक के खाते , करोड़ों के घोटाले, अरबों धन का दुरुपयोग – जो देश हित में काम आ सकता है , वह एक व्यक्ति का महत्व बढ़ाने हेतु किया जा रहा है पेट काफी मोटे हो गये हैं वे भरते ही नहीं देश की कौन सोचता है है कोई ऐसा व्यक्ति जो शुद्ध हृदय से अपने व्यष्टि को पीछे धकेलकर समष्टि हितार्थ कार्य करे और राष्ट्रहित पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे

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