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12th Hindi Subjective Question Part-3| तुलसीदास पाठ का सारांश लिखें| vvi hindi subjective question

1.तुलसीदास पाठ का सारांश लिखें

प्रस्तुत दोनों पदों में महाकवि तुलसीदास की अपने आराध्य भगवान श्री राम के प्रति अटूट एवं अडिग आस्था प्रकट हुई है। इन पदों में कवि की काव्य और कला संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अद्भुत झलक मिलती है। प्रथम पद कवि द्वारा रचित विनय पत्रिका के सीता स्तुति खंड से लिया गया है। कवि राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न आदि की विधिपूर्वक स्तुति करने के बाद सीताजी की स्तुति की है। उसने सीता को मां कहकर संबोधित करते हुए अपनी भक्ति और श्रीराम के मध्य, माध्यम बनने का विनम्र अनुरोध किया है, जिससे उसके आराध्य सीताराम उसकी भक्ति से प्रभावित होकर उसका इस भवसागर से उद्धार कर दे] उसने उचित समय पर ही अपने अनुरोध को श्रीराम के समक्ष प्रस्तुत करने की प्रार्थना की है जिससे वे दयाद्र्य हो उसकी भी बिगड़ी बना दें। द्वितीय पद में कवि ने श्रीराम की प्रति अटूट विश्वास एवं आस्था प्रकट करते उसने अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन किया है। वह अपने आराध्य देव से अत्यंत विनम्रता पूर्वक उनकी अनुकंपा का एक टुकड़ा पाने की आकांक्षा से भीख मांग रहा है। वह अपने प्रभु की भक्ति सुधा से अपना पेट भर लेना चाहता है।
2.कबहुँक अंब अवसर पाई । यहाँ अंज सम्बोधन किसके लिये है। इस सम्बोधन का मर्म स्पष्ट करें
उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति में अम्ब का संबोधन माँ सीता के लिए किया गया है। यह पद विनयपत्रिका का है जिसमें तुलसी ने श्रीराम को एक पत्रिका लिखी है और उनसे कष्टहरण , भक्ति दान की याचना की है । बड़े दरबार में ये सिफारिश भी करायी जाती है । तुलसी माता सीता से ही प्रार्थना करते हैं कि हे अम्बा ! मेरी माता , कभी आपको अवसर प्राप्त हो सके तो प्रभु श्रीराम को मेरी याद दिला देना ।
2. प्रथम पद में तुलसी ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है लिखिए।
उत्तर- तुलसी अपने को सब प्रकार दीन मलीन बताते हैं , क्षीण भी हैं और महापापी भी है राम का नाम लेकर ही पेट भरते हैं और फिर भी अपने को श्रीराम का दास कहते हैं, भला वे ऐसा कौन सा काम करते हैं कि उन्हें राम का दास माना जाये वे यही चाहते हैं कि उनकी दीन दशा का बखान किसी प्रकार राम तक पहुंचे।

3. अर्थ स्पष्ट करें-
(क) मान लै भरै उदर एक प्रभुदासी – दास कहाइ।
(ख) काली कराल दुकाल दारुन , सब कुभाँति कुसाजु ।
नीच जन मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।
(ग) पेट भरि तुलसिहि जैवाइय भगति सुधा सुनाजु।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसी कृत विनयपत्रिका की पंक्तियाँ हैं। तुलसी कहते हैं यदयपि वे महापापी हैं अधम से भी अधिक अधम हैं। दीन-हीन भी हैं । साधनहीन भी हैं क्षीण और मलीन भी हैं फिर भी बाज नहीं आते, परमात्मा का नाम ले-लेकर ही अपना पेट भरता हूँ – यह अनीति भी मैं कर रहा हूँ पर माता तो उदार होती है बालक की सारी अनीति को भी क्षमा कर देती है। आप भी मेरे अनीति जन्य व्यवहार को क्षमा करते मेरी सिफारिश राम जी से करने की कृपा करियेगा । यह सत्य है कि मैं अपना पेट उन्हीं का नाम लेकर भरता हूँ अपने को प्रभु का दास भी कहता हूँ , जबकि मैं इस योग्य नहीं हूँ। फिर भी माता तुम्हारी कृपा की आकांक्षा करता हूँ।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास की विनयपत्रिका से उद्धृत हैं । यहाँ तुलसी अपनी यथार्थ स्थिति की व्यंजना कर रहे हैं कवि कहते है की हे नाथ यह कलयुग का काल है । महामारी अकाल चारों तरफ व्याप्त है यह दुकाल है उत्तम काल नहीं संसार भीषण दुखों से ग्रस्त है । यहाँ इस काल में उत्तम साधन रूपी काल का अकाल पड़ गया है फलत जो भी उद्यम हैं और उपाय हैं , साधन हैं , सभी बुरे ही हैं । यह ऐसा कष्टदायक समय है यहाँ कार्य भी सहज नहीं पूरे होते हैं अतः भीख माँगना ही उचित है वही मैं आपसे माँग रहा हूँ । कलयुग की करतूत सतत् नीच ही है वे रात – दिन विषयों हित पाप में ही लिप्त रहते हैं । मन अवश्य ऊँचा है सच्चा सुख भी चाहता है पर सच्चा सुख तो मोक्ष ही है वह तुम्हारी कृपा के अभाव में असम्भव है
(ग) प्रस्तुत पंक्ति तुलसी कृत विनय – पत्रिका से लिया गया है । इस पंक्ति में रामभक्त तुलसी अपने प्रभु से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु राम ! आप मुझे भक्ति रूपी अमृत पिलाकर मेरी ज्ञान रूपी भूख को शान्त करें । तुलसी सीता से कैसी सहायता माँगते हैं तुलसी मात्र यही चाहते हैं कि सीता माता थोड़ी उनकी सिफारिश कर दें । पर यह ध्यान रहे कि आप मेरी सिफारिश तभी करें , जब अवसर अनुकूल हो , प्रभु श्रीराम प्रसन्नचित्त हों और प्रायः अकेले हों । वे यह भी पूछेगे कि यह कौन है तो यह बता देना कि मैं दीन हीन हूँ और उन्हीं का नाम लेकर उदर भरता हूँ।

5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं
उत्तर-तुलसी सीधी बात राम से नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डर है कि उनके पापी आचरण पर प्रभु कुपित हो सकते हैं । माता बड़ी सहदय होती है , वह पुत्र के अनेक अवगुन सह लेती है, उसकी ममता विलक्षण होती है। उसके मन में वात्सल्यमयी दया भी समायी रहती है अत वे माता सीता का सहारा लेते हैं। साथ ही पति को पत्नी

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